ज्योतिष में रोग और चिकित्सा

ज्योतिष में रोग और चिकित्सा
● ज्योतिष शास्त्र में स्वास्थ्य को भी महत्वपूर्ण माना गया है और प्राचीन समय से ज्योतिष रोगो का निदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। इसके लिए अनेक प्रकार के ज्योतिषीय योग बताए गए हैं ! रोग के भावों, उनके स्वामियों, लग्न व लग्नेश की स्थिति और लग्न पर पापी ग्रहों की युति व उनकी दृष्टियों से रोग की प्रकृति, उसका प्रभाव तथा उसके कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है।
● चिकित्सा ज्योतिष में प्रत्येक राशि तथा ग्रह- शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करता है। जिस ग्रह का जिस राशि पर दूषित प्रभाव होता है उससे संबंधित अंग पर रोग के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। जन्मकुण्डली में प्रथम भाव से शारीरिक कष्ट एवं स्वास्थ्य का विचार होता है। द्वितीय एवं सप्तम भाव आयु के व्ययसूचक हैं। छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारणों का है। बीमारी पर उपचारार्थ व्यय का विचार जन्मकुण्डली के द्वादश भाव से किया जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं।
● मानव के शरीर में ग्रहों का अपना एक मुख्य स्थान है जेसे- सूर्य को शरीर कहा गया है, चन्द्रमा को मन, मंगल को सत्व, बुध को वाणी-विवेक, गुरु को ज्ञान और सुख, शुक्र को काम और वीर्य, शनि को दुःख, कष्ट और परिवर्तन तथा राहु और केतु को रोग एवं चिंता का अधिष्ठाता ग्रह माना है। वैदिक ज्योतिष में छठवाँ भाव रोग, आठवां भाव मृत्यु तथा बारहवाँ भाव शारीरिक व्यय व पीड़ा का माना जाता है। षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिस भाव में होते है उससे संबद्ध अंग में पीड़ा हो सकती है। किसी भी भाव का स्वामी 6, 8 या 12वें में स्थित हो तो उस भाव से सम्बंधित अंगों में पीड़ा होती है। इन भावों के साथ ही इन भावों के स्वामी-ग्रहों की स्थितियों व उन पर पाप-ग्रहों की दृष्टियों आदि को भी देखना समीचीन होता है।
● रोगों के कारण- लग्न और लग्नेश संपूर्ण शरीर तथा मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं। लग्न में बैठे ग्रह भी व्याधि के कारक होते हैं। लग्नेश की अनिष्ट भाव में स्थिति या लग्नेश पर पाप-ग्रहों की दृष्टि भी रोग को उत्पन्न करने में सक्षम है ! जातक को अक्सर रोग कारक ग्रहों व रोग के भावों की विभिन्न दशाओं (महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा, गोचर, शनि की साढ़ेसाती, ढईया) में ग्रहों व भावों के अनुसार ही विभिन्न रोग प्राप्त होते हैं, साथ ही इन पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी हो तो इन पाप प्रभाव के ग्रहों की दशा में रोग और भी अधिक उग्र हो जाते है
● यदि चंद्रमा क्षीण अथवा निर्बल हो या चन्द्रलग्न में पाप ग्रह बैठे हों तो रोग सम्भावित है ।
● यदि लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो।
● यदि पाप ग्रह शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान हों।
इन बीमारियों का कुण्डली में सावधानी पूर्वक अध्ययन करके इन रोगों का पूर्वानुमान द्वारा अनुकूल रत्न धारण करके, ग्रहशांति द्वारा एवं मंत्र आदि का जाप एवं रोग देने वाले अथवा स्वास्थ्य को कमजोर करने वाले ग्रहों के हस्तनिर्मित वैदिक यत्रों को लगा करके भी एक बड़े नुक्सान से काफी हद तक बचा जा सकता है।
● जन्मकुंडली और वास्तु शास्त्र से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए आप हमसे ऑनलाइन संपर्क कर सकते हैं।

■ डॉ योगेश व्यास, मानसरोवर, जयपुर।
ज्योतिषाचार्य, टापर,
नेट (साहित्य एवं ज्योतिष ),
पीएच. डी (ज्योतिषशास्त्र) ।
Mail- [email protected]
Website — www.astrologeryogesh.com/
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