
सेहत की जांच का अवसर देती है कांवड़ यात्राएं
प्रकृति परिवर्तन का महीना होता है सावन का महीना। भीषण गरमी की विदाई और बरसात के आगमन की खुशी चारों और देखी जाती है। हरियाली से प्राकृतिक वातावरण सुरम्य हो जाता है तो मन और मस्तिष्क में भी इसका असर दिखाई देता है। शिवालयों में भगवान भोलेशंकर के प्रति आस्था अधिक बढ़ जाती है, भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
सावन भगवान भोलेनाथ की भक्ति का महीना होता है। इस महीने में शिव की आराधना का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सभी देवता सावन में आराम करते हैं और भगवान भोलेशंकर पर सृष्टि के संचालन का दायित्व होता है। इस महीने में भगवान शंकर के जलाभिषेक का विशेष महत्व है।
इससे वे प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। इस दौरान विभिन्न साधनों से उन्हें प्रसन्न किया जाता है। शिवलिंग पर नानाप्रकार की वस्तुओं का अभिषेक, शिवजी का श्रृंगार और उनका अलौकिक सौंदर्य हर किसी को अभिभूत ही नहीं करता, आस्था का नया कलेवर पेश करता है।
लोग अपनी भावनाओं के अनुरुप उनका अभिषेक करते हैं। शिवजी की प्रतिमा के श्रृंगार की वस्तुओं का भी अपना महत्व है। पानी, दूध, धतुरा, बिल्व पत्र ही नहीं, भांग से अभिषेक करके पीछे भी कई कारक काम करते हैं। शिवालयों में भगवान भोलेशंकर की अंलकृत झांकियों के माध्यम से यह पहचाना जा सकता है कि सावन में शिवजी क्यूं अधिक सुंदर लगते हैं और लोगों की भावनाएं भगवान भोलेशंकर के प्रति क्यूं उमड़ती है।
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। कांवड़ का जल केवल ज्योतिर्लिंग और स्वयं भू शिवलिंग पर ही चढ़ाया जाता है। ऋतु परिवर्तन के इस संधिकाल में जब ग्रीष्म ऋतु की विदाई और वर्षा ऋतु का आगमन होता है, कांवड़ यात्रा धर्म और आध्यात्म के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक रुप से कई संदेश देती है।
कांवड़ यात्रा अति पौराणिक मानी जाती है। कांवड़ को पहले श्रावण के नाम से पहचाना जाता था और इसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। इसका मूल शब्द कांवर है। इसका दूसरा अर्थ बंधे से है। शिवभक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल चलते हुए शिवालयों तक जाते हैं।
भोलेनाथ का कांवड़ से लाए गए पवित्र सरोवर के जल से अभिषेक करने से तन और मन के सौंदर्य में वृद्धि होती है। यात्रा के दौरान भोले शंकर के भक्तों के चेहरों पर अद्भुत आस्था और भक्ति झलकती है। मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने विषपान किया था और वह गरल उनके कंठ में अटक गया। विषपान के कारण जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने उनका जल से अभिषेक किया, तभी से यह परंपरा आज तक जारी है।
भगवान भोलेनाथ का पवित्र सरोवर से लाए जल से अभिषेक करने से वे प्रसन्न होते हैं। सरल शब्दों में यूं भी कहा जा सकता है मन के मैल और दूषित वृतियों को शीतल जल से धोने से मन की मलीनता दूर होती है। सावन में शिवजी के अभिषेक का अर्थ भी कमोबेश यही है। इसी कारण सावन का महीना शिवजी को अति प्रिय लगता है।
सदियों से कांवड़ यात्राएं निकाली जा रही है। इन यात्राओं का मकसद केवल धार्मिक ही नहीं, सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष भी जुड़ा है। इन यात्राओं में श्रृद्धालु एक संकल्प लेकर चलते है। वे एक नियम, आचार विचार और व्यवहार के तहत बंधे होते हैं। इस तरह कठोर नियमों के पालन के साथ वे अपनी यात्रा तय करते हैं।
ऐसा करने से उनके मन में संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास जागृत होती है। मनोवैज्ञानिक रुप से ही नहीं, प्रबंधन की दृष्टि से भी यह माना जाता है कि एक लक्ष्य के साथ शुरु किया गया कोई भी काम निश्चित रुप से पूरा होता है।
फिर इसमें कितनी भी बाधाएं आती हो, लगन और मेहनत के साथ प्रयास करते रहने से वह बाधाएं भी दूर होने लगती है। कांवड़ यात्राएं सामूहिक सामंजस्यता का प्रतीक मानी जाती हैं। इसमें हर श्रद्धालु सामूहिकता के भाव से काम करता है। अनेकता में एकता का दर्शन होता है। पारिवारिक और सामाजिक समरता के साथ एक लक्ष्य को साधते हुए अपने आराध्य देव का जलाभिषेक दरअसल व्यष्टि से समष्टि तक पहुंचने का मार्ग है।
इसमें सर्वहिताय सर्वसुखाय की कामना भी शामिल है। यह वास्तव में शारीरिक और मानसिक परिपक्वता का एक ऐसा अवसर है जिसमें तन और मन की सुंदरता की अभिव्यक्ति महसूस होती है। यह कहा भी जाता है कि स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन का आधार है और स्वस्थ मन ही सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से स्वस्थ और मजबूत समाज का निर्माण कर सकता है।
कांवड़ यात्रा का धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष मन और विचार को शुद्ध करता है तो स्वास्थ्य के लिहाज से शारीरिक क्षमता की जांच का अवसर देता है। इस यात्रा का एक महत्व यह भी है कि यह हमारे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। इससे हम अपनी क्षमताओं को पहचान सकते हैं और अपनी शक्ति का अनुमान लगा सकते है।
पुराने जमाने में लोगों के लिए हैल्थ चैकअप की कोई व्यवस्था नहीं थी। विभिन्न सुविधाओं से लैस आज के जैसे अस्पताल नहीं थे। उस जमाने में लोग जब कांवड़ यात्रा पर निकलते थे, तो उन्हें अपनी शारीरिक क्षमता का अंदाजा मिल जाता था। रोगी व्यक्ति इतनी लंबी यात्राएं नहीं कर सकता था।
रास्ते की धूप, बारिश, भूख, प्यास और पैदल यात्रा से ज्ञात अज्ञात बीमारी का पता चल जाता था। उस जमाने के लोग कांवड़ जैसी धार्मिक यात्राओं के जरिये अपने शरीर की क्षमता को मांपते थे। इन यात्राओं से यह साबित हो जाता था कि शरीर में कितना दमखम है। इस तरह कांवड़ यात्रा लोगों की सेहत की सालाना जांच भी कही जा सकती है।
बरसात का मौसम स्वास्थ्य की दृष्टि से सजग रहने का होता है। शायद इसी सोच से प्रेरित होकर लोगों ने सावन के महीने में कांवड़ लाने का प्रचलन शुरु किया होगा।
स्वास्थ्य की दृष्टि से इस मौसम में खानपान, आहार विहार में जरा सी असावधानी बीमारियों का कारण बन जाती है। लिहाजा आत्म नियंत्रण के जरिये चौमासे में स्वस्थ रहने की परंपरा का पालन कांवड़ यात्रा से होता है। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि वर्षा ऋतु में शारीरिक क्षमता का स्तर कैसा है। ऋतु परिवर्तन के इस संधिकाल में शायद इसी से प्रेरित होकर कांवड़ यात्राओं का प्रचलन शुरु हुआ होगा। कांवड़ यात्राओं का महत्व शारीरिक क्षमता की जांच का एक अवसर देता है, ताकि व्यक्ति अपने स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन से अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचे।
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