कांग्रेस ने बदली रणनीति, राहुल वरिष्ठ नेताओं से सामंजस्य बिठाने को तत्पर

कांग्रेस ने बदली रणनीति, राहुल वरिष्ठ नेताओं से सामंजस्य बिठाने को तत्पर

कांग्रेस ने बदली रणनीति, राहुल वरिष्ठ नेताओं से सामंजस्य बिठाने को तत्पर

दिल्ली। कांग्रेस में पुराने नेताओं की पूछ बढ़ी है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी पुराने नेताओं को सौंपने और उनके हिसाब से काम करने की सोच बन रही है।

जयराम रमेश को संचार विभाग का प्रमुख बनाना इसी तरह का फैसला था। इसका असर भी दिख रहा है। कांग्रेस पहले के मुकाबले ज्यादा प्रभावी तरीके से अब भाजपा और उसके प्रचार का जवाब दे रही है।

राहुल गांधी की छवि खराब करने वाले अभियान को रोकने के लिए भी कांग्रेस की नई मीडिया टीम ने ठोस पहल की है। रमेश का फैसला करने से पहले कांग्रेस आलाकमान ने हरियाणा में भूपेंदर सिंह हुड्डा की कमान बनवाई।

वे खुद विधायक दल के नेता हैं और उनकी पसंद के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना कर अभी से 2024 के विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंप दी गई।

जिस समय हुड्डा का फैसला हुआ उसी समय हिमाचल प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की सांसद पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और इस साल के चुनाव की जिम्मेदारी उनको सौंपी गई।

अगले साल कर्नाटक में चुनाव होने वाला है, जहां सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार की कमान में पार्टी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। अशोक गहलोत और भूपेश बघेल का महत्व भी कांग्रेस ने समझा हुआ है।

मध्य प्रदेश में भी पार्टी ने कमलनाथ को ही जिम्मेदारी सौंपी है। आने वाले दिनों मे ऐसे और फैसले होंगे। बताया जा रहा है कि पार्टी के पुराने नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी और उनके साथ नए नेता जोड़े जाएंगे।

असल में पिछले चार-पांच साल में पार्टी के नए नेताओं ने जितना निराश किया है उससे कांग्रेस आलाकमान की आंख खुली है। कांग्रेस के युवा नेता सब कुछ मिलने के बाद या तो असफल रहे हैं या पार्टी छोड़ कर भाजपा और दूसरी पार्टियों के साथ चले गए हैं। पंजाब में चन्नी और सिद्धू का प्रयोग असफल रहा।

गुजरात में चावड़ा और धनानी का प्रयोग असफल रहा। महाराष्ट्र में नाना पटोले का प्रयोग भी सफल होता नहीं दिख रहा है। असम में गौरव गोगोई और सुष्मिता देब का प्रयोग भी फेल हो गया।

राहुल गांधी ने पहले नए नेताओं को लेकर बड़े प्रयोग किए। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने के बाद उनका मोहभंग हुआ। फिर जब जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह भी सब कुछ मिलने के बाद पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गए तो राहुल ने नए प्रयोग से तौबा की।

बताया जा रहा है कि अपने आसपास के अराजनीतिक लोगों की सलाह से चलने की बजाय वे पुराने और राजनीतिक लोगों की सलाह के काम करने के पुराने मॉडल पर लौटे हैं। इससे आने वाले दिनों में कांग्रेस को फायदा हो सकता है।


For More Updates Visit Our Facebook Page

Follow us on Instagram | Also Visit Our YouTube Channel

कांग्रेस ने बदली रणनीति, राहुल वरिष्ठ नेताओं से सामंजस्य बिठाने को तत्पर

और पढ़ें